वैदिक ज्योतिष से जानें जीवन में हो रही समस्याओं का कारण व उचित निवारण


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वैदिक ज्योतिष से जानें जीवन में हो रही समस्याओं का कारण व उचित निवारण

जिस के जन्म समय में सूर्यशनि , चंद्रमा, मंगल यह सब ग्रह पंचम स्थान में स्थित है तो जातक की  माता व भाई का जीवन बड़ा ही कष्टप्रद हो जाता है अर्थात ऐसा  जातक के लिए भारी होता है |
यदि 1.8 भाव में मंगल पाप ग्रहों से युक्त या  दृष्ट हो तथा किसी भी शुभ ग्रह की उस पर दृष्टि न हो तो जातक के लिए यह योग बहुत ही कष्टप्रद होता है | कभी कभी यह योग अकाल मृत्यु का  कारण भी बनता है | इसी पद्धति से  सूर्य व  शनि ग्रह यदि 1.8 में पापयुक्त दृष्ट तथा शुभ ग्रहों के वृद्धि योग से रहित हो तब भी वे भी  अशुभ माने जाते हैं |
यदि लग्न क्षितिज   लग्न में या नवम में सूर्य सप्तम में शनि ग्यारहवें भाव में बृहस्पति य शुक्र हो तो जातक हमेशा बीमार रहता है | ध्यान न देने पर किसी लाइलाज बीमारी का शिकार भी जल्दी होता है | शरीर स्थूल व कम उर्जावान होता है |
बारहवें भाव में अरिष्ट की दृष्टि से सभी ग्रह खराब होते हैं यह सामान्य नियम है | इनमें  भी सूर्य, शुक्र,  चंद्रमा व राहु द्वादश होने पर विशेष अरिष्ट कारक हो जाते हैं यदि द्वादश भाव पर इन की दृष्टि हो तो भी भंग  अर्थात योग भंग होता है शुभ योग नहीं होता |
ऐसे जातक को जीवन भर  संघर्ष करना पड़ता है और जीवन भर आर्थिक तंगी, मानसिक तनाव, घरेलू  कलह की वजह से जीवन भर शांति, सुख, ऐश्वर्य, मान-सम्मान आदि से  वंचित रहना पड़ता है लेकिन ऋषियों ने इस प्रकार के योग लग्न के लिए कुछ बेहतरीन उपाय भी बताए हैं  जो प्रत्येक  जातक की कुंडली देख कर ही करनी चाहिए |
वैदिक ज्योतिष एक वेदांग है यानि वेदों का अंगइसकी सटीक गणना करने पर यह सटीक परिणाम देता है| अगर आजकल ज्ञान  के अभाव के कारण बहुत से ज्योतिषी इसकी सही से गणना नही कर पाते हैं तो दोष उनका है न कि ज्योतिष शास्त्र का|
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